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Wednesday, October 5, 2011

From the Dusty Corner (part 2)

Can't call it a poem but some thoughts penned down years back. Part 1 is here.

एक रिश्ता, उन नए पत्तो पे ओस की बूंद की तरह
जो हमेशा उन पत्तो पर सजी तो रहना चाहती है,
पर अपने नाजुक स्वाभाव से परिचित है.
ना चाहते हुए भी उन्हें उस तूफ़ान का इंतज़ार है
जो अब नहीं तो तब, उन्हें अपने साथ बहा ले जायेगा,
उन पत्तो को वैसा ही सुना और अकेला छोड़.

एक रिश्ता, उन नए पत्तो पे ओस की बूंद की तरह
जो है भी और नहीं भी, एक रिश्ता.


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